कोरोना वायरस से बचाव : सैयदना साहब के पूर्वज की मजार पर जियारत के लिए ऑनलाइन बुकिंग, रुमाल रख करते हैं स्पर्श।

विशाल जैन उज्जैन – समाज ने मजार ए नजमी पर सावधानी के लिए नए तरीके अपनाए कोरोना संक्रमण के चलते कमरी मार्ग स्थित बोहरा समाज के प्रमुख धर्मस्थल मजार-ए-नजमी पर जियारत के लिए अत्याधुनिक इंतजाम किए गए हैं। जियारत के लिए ऑनलाइन परमिशन लेना अनिवार्य है। मजार को स्पर्श करने के लिए रुमाल दिया जाता है। रुमाल को मजार पर रख कर ही स्पर्श कर सकते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जियारत का समय तय है और इस समय में अधिकतम 150 लोगों को ही प्रवेश दिया जा रहा है। शहर की सभी 27 मस्जिदों में अभी प्रवेश चालू नहीं किया है। यहां तीन सैयदना साहब की दरगाह होने से मजार ए नजमी विश्वभर में बोहराजन के लिए पवित्र धर्मस्थल है। यहां विश्वभर से बोहरा बंधु जियारत के लिए आते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण यहां मार्च से ही जियारत पर रोक लगा दी थी। 8 जून को जब धर्मस्थलों पर दर्शनार्थियों के प्रवेश की अनुमति दी गई तब मजार ए नजमी की प्रबंध कमेटी ने पूरी तैयारी करने के बाद ही सीमित संख्या में समाजजनों को प्रवेश देना तय किया। पुरुषों के लिए सुबह 7.30 से 10 और महिलाओं को शाम 4.30 से 6 बजे तक प्रवेश का समय तय है।

यूनिक आईडी नंबर से प्रवेश
बोहरा समाज के प्रत्येक व्यक्ति का इंटरनेशनल यूनिक आईडी नंबर है। इसका गोल्डन कार्ड भी है। जियारत के लिए इस नंबर से पंजीयन कराना होता है। पंजीयन के बाद संस्था जियारत के लिए आने का समय देती है। उक्त समय पर पहुंचने वाले समाजजनों को सोशल डिस्टेंसिंग से कतार में लगाते हैं। उन्हें थर्मल स्क्रीनिंग की जांच के बाद प्रवेश देते हैं। प्रवेश मिलते ही श्रद्धालु के हाथ सैनिटाइज कराते हैं। उन्हें एक रुमाल देते हैं। मजार को स्पर्श करने के पहले उक्त रुमाल को मजार पर रखकर रूमाल के ऊपर से ही मजार को स्पर्श किया जाता है। वापसी में यह रुमाल अलग जमा करते हैं। इन उपयोग किए रुमालों को धुलाई और सैनिटाइज करने के लिए भेज दिया जाता है।

150 साल पुरानी मजार होने से ये परिसर मजार ए नजमी कहलाता है
मजार ए नजमी परिसर करीब 350 साल से भी ज्यादा पुराना है। यहां 39 वें सैयदना इब्राहीम वजीहउद्दीन साहब, 40 वें सैयदना हैबतुल्लाह साहब और 47 वें सैयदना अब्दुल कादिर नजमुद्दीन साहब की मजार है। मौजूदा सैयदना आलीकदर मुफद्दल सैफुद्दीन साहब के परदादा सैयदना नजमुद्दीन साहब की 150 साल पुरानी मजार होने से यह परिसर मजार ए नजमी कहलाता है। यहां नजमुद्दीन साहब का महल भी है, जिसमें वे उज्जैन आने के दौरान विश्राम करते थे।

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