ट्रायबल वेल्फेयर टीचर्स एसोसिएशन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर आँनलाइन सेमिनार आयोजित किया गया

सचिन मिश्रा पन्ना नई शिक्षा नीति से सभी के लिए समान एवं सस्ती शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होगा –

भुवनेश्वर से जाने माने शिक्षाविद एवं आल इंडिया सेव एजुकेशन मुवमेंट से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अशोक मिश्रा ने किया संबोधित।

संगठन के प्रांताध्यक्ष डी के सिंगौर एवं महासचिव सुरेश यादव की पहल पर आयोजित इस ओनलाइन सेमिनार में प्रदेश के सभी क्षेत्रों से एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर ट्राईबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों का ऑनलाइन सेमिनार आयोजित किया गया।

ट्राईबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन के प्रांतीय प्रवक्ता ने सेमिनार पर हुई चर्चा की जानकारी देते हुए बताया कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक भारत-श्रेष्ठ भारत को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जिसमें बहुत सी खूबियां देखने को मिल रही है। इस शिक्षा नीति से शिक्षा स्तर में सुधार के बहुत बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन यथार्थ में इस शिक्षा नीति से सभी के लिए समान एवं सस्ती शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होगा । इस शिक्षा नीति के अनुसार गांवों-कस्बों में खोले गए स्कूलों को बंद कर के 10 से 12 किलोमीटर के दायरे में एक बड़ा शिक्षा परिसर में प्रारम्भ किया जाएगा, जहां तक आने-जाने के लिए बच्चों को बस आदि परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। विचारणीय यह है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार जब एक किलोमीटर दूरी पर हर मजरे /टोले / बस्ती में प्राथमिक शाला, 3 किलोमीटर में माध्यमिक और हर 5 किलोमीटर में हाई स्कूल/ हायर सेकेंडरी होने पर पहली में दर्ज होने वाले 13 करोड़ छात्रों में से कक्षा छठवीं में सिर्फ 7 करोड़ और कक्षा 9वी में 4 करोड़ बच्चे ही प्रवेश लेते हैं। ऐसे में 10 से 12 किलोमीटर के दायरे में एक ही सरकारी विद्यालय होने पर ग्रामीण क्षेत्रों पढ़ाई की क्या स्थिति होगी??, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

नई शिक्षा नीति में भारत की जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन खर्च की समय सीमा तय नही की गई है ,एवं इस खर्च में निजी क्षेत्र का खर्च भी सम्मिलित किया गया है, नीति में निजी विद्यालय को खोलने पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं है, जिससे हर गांव में निजी विद्यालय खुलेंगे और इससे अभिभावकों को खुद भूखे रह कर बच्चों को निजी विद्यालयों में दर्ज कराना मजबूरी हो जाएगी। जिसके कारण शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा तथा इससे सबके लिए एक समान और मुफ्त शिक्षा का सपना साकार नहीं होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए शिक्षा नीति बनाने की बात कही जा रही है, लेकिन इस बात का ध्यान नहीं रखा जा रहा है कि नालंदा विश्वविद्यालय में दस हजार छात्रों को पढ़ाने के लिए दो हजार शिक्षक नियुक्त थे अर्थात प्रति 5 छात्रों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक। वहीं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षक मार्गदर्शक की भूमिका में होंगे और विद्यालयों में कोई भी स्वयंसेवक आकर बच्चों को पढ़ा सकेगा (जिसे समुदाय की सहभागिता बताया गया है) , साथ ही किसी कक्षा के होशियार छात्र से भी पढ़ाई में सहायता ली जाएगी। इस शिक्षा नीति में नर्सरी से पांचवीं तक की पढ़ाई में कोई विषयवार सिलेब्स नहीं होगा, बच्चे खेल-खेल में पढ़ाई करेंगे। इस शिक्षा नीति में शिक्षकों की भर्ती नियम बहुत ही सख्त हो जाएगी, जिससे गरीब और वंचित तबके के लोगों को सामान्य तौर पर शिक्षक बनने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा अर्थात शिक्षक पद पर कुछ वर्ग विशेष के लोगों का एकाधिकार हो जाएगा । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सरकारी विद्यालयों के साथ ही निजी विद्यालयों को भी बढ़ावा देने की बात कही जा रही है, साथ ही निजी विद्यालयों की फीस निर्धारण पर सरकार का किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा। इस शिक्षा नीति से ऑनलाइन शिक्षा को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे निजी कंपनियां बैठे बैठाए लाखों करोड़ों रुपए कमाएंगे, जिससे देश का गरीब या तो सब कुछ बैंच कर बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर होगा या मजबूरी में शिक्षा से विमुख रहैगा।

इस तरह की विसंगतियों से भरपूर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करना देश के भविष्य, विशेषकर गरीबों, वंचित तबके के साथ खिलवाड़ होगा। ट्राईबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन ने गरीबों से दूर हो रही शिक्षा पर चिंता व्यक्त की है।

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