राजस्थान में 16 जनवरी से 17 मई तक 11.50 लाख से ज्यादा कोविड डोज बर्बाद।

भूमिका भास्कर डेस्क

एक तरफ तो राज्य टीकों की कमी का रोना रो रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार की तरफ से उपलब्ध कराए जा रहे टीकों की बर्बादी भी की जा रही है।

देश में कोरोना का टीकाकरण अभियान जारी है लेकिन कुछ राज्यों में वैक्सीन की कमी के कारण वैक्सीनेशन रोक दिया गया है। एक तरफ कुछ राज्यों ने वैक्सीन की कमी होने के कारण टीकाकरण अभियान को अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया है और वहीं राज्यों में वैक्सीन की बर्बादी हो रही है। उन राज्यों का कहना है कि टीके की आपूर्ति नहीं हो रही है लेकिन सेंटर पर भरपूर टीकों की बर्बादी की जा रही है। इस अव्यवस्था का ताजा उदाहरण राजस्थान बना है, जहां 8 जिलों के 35 वैक्सीनेशन सेंटरों पर 500 वायल डस्टबिन में मिली हैं, जिनमें करीब 2,500 से भी ज्यादा डोज हैं। 500 से ज्यादा वायल 20 फीसदी से 75 फीसदी तक भरे मिले। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में 16 जनवरी से 17 मई तक 11.50 लाख से ज्यादा कोविड डोज बर्बाद कर दिए गए। वैक्सीन की बर्बादी पर भी राज्य और केंद्र सरकार के अपने- अपने आंकड़े हैं। राजस्थान सरकार बता रही है कि प्रदेश में वैक्सीन वेस्टेज दो फीसदी है, जबकि अप्रैल में केंद्र ने सात फीसदी और 26 मई को तीन फीसदी वैक्सीन खराब होना बताया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार Covid-19 वैक्सीन की बर्बादी सबसे ज्यादा झारखंड में हो रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह निर्देश दिए थे कि कोरोना के टीके की बर्बादी ना के बराबर हो, कोरोना के टीके की बर्बादी एक फीसदी से भी कम रखना है। आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में सबसे अधिक 37.3 फीसदी वैक्सीन खुराकों की बर्बादी हुई। इसका मतलब यह है कि हर तीन में से एक खुराक बर्बाद हो गई। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 6.3 फीसदी है, कुछ अन्य राज्यों की बात करें तो छत्तीसगढ़ बर्बादी के मामले में दूसरे और तमिलनाडु तीसरे नंबर पर आता है। छत्तीसगढ़ में 30.2 फीसदी बर्बादी हुई तो वहीं तमिलनाडु में यह आंकड़ा 15.5 फीसदी का है। इनके बाद जम्मू -कश्मीर (10.8 फीसदी) और मध्य प्रदेश (10.7 फीसदी) का नंबर है। वैक्सीन की इतनी बड़ी मात्रा में बर्बादी होना बड़ी चिंता का कारण है। टीके का वितरण और खरीद राज्य की जनसंख्या के आधार पर की जाती है।

किसी भी टीकाकरण अभियान में वैक्सीन की बर्बादी की बात का ध्यान रखा जाता है। यही आंकड़े देश की टीकाकरण दर तय करते है। इसका एक सुनिश्चित फार्मूला है कि किसी राज्य की कितनी आबादी को वैक्सीन देनी है आबादी के हिसाब से गणना की जाती है। इसी के हिसाब से ही वैक्सीन खरीदी जाती है। यह गणना करते समय डब्लूएमएफ यानी वेस्टेज मल्टीपल फैटर भी महत्वपूर्ण होता है। जाहिर है इन राज्यों को यह ध्यान रखना होगा कि टीकाकरण कार्यक्रम में इस तरह की लापरवाही न हो। हर बर्बाद खुराक का मतलब है कि किसी दूसरे व्यक्ति को टीका न मिलना, ऐसे समय जब देश टीकों की पर्याप्त सप्लाई न होने के कारण कमी से जूझ रहा हो, टीकों की यह बर्बादी अक्षम्य है।

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