5 जून पर्यावरण दिवस : वृक्ष जियेंगे तभी तो हम बचेंगे।
सचिन कुमार मिश्रा,पन्ना
पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सब संकल्पित होते है कि प्रकृति को हरा भरा करने की आवश्यक्ता हे कही बात प्राण वायु की होती है तो कही संतुलन बनाने की क्या एक वृक्ष को काटने से पहले किसी के मन में विचार परिवर्तन होता है अगर होता है तो इसका मतलब है कि हम प्रकृति के साथ हे अन्यथा छतरपुर के जंगल को हीरे की लिए खोखला होने की बात हो या पन्ना से केन वेतवा लिंक परियोजना में लाखों की तादाद में पेड काटने की बात की जाती रही है जब हम अरबो रुपया खर्च करते हे तब जा के कही एक छोटा सा जंगल बन पाता है अगर वही पर बात प्रकृति की जाये तो बहुत कम मुद्रा का प्रयोग करके या मात्र प्रकृति की मदद से एक बहुत बड़े जांगले का निर्माण कर सकते हे क्याकि प्रकृति अपने आप को जितना समझती है उतना एक मनुस्य आसनी से समझ पाने में सकक्षम नही है जहाँ आज महाराष्ट्र जैसे जगह में डॉक्टर शपथ लेकर बोलते है कि एक पेड़ लगाएंगे ताकि आने वाले समय में ऑक्सीजन की कमी ना हो आज वन विभाग द्वारा विविन्न प्रकार की समितियां गठित की जाती है ताकि वनों का विकाश हो सके लेकिन अगर जमीनी स्तर पर देखे तो जैसा शासन व्यय कर रहा है वेषा कही नजर नही आ रहा है अगर वेश नजर आने लगे तो भी हमारी जीत होगी और वर्तमान में बिगड़ा हुआ इकोसिस्टम भी अपने अनुकूल कार्य करने लगेगा