भूमिका भास्कर हस्तक्षेप : मध्यप्रदेश में विकास की सनक में सामूहिक वृक्षसंहार।
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विशेष संपादकीय – गोपाल स्वरूप वाजपेयी ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश की संयुक्त केन-बेतवा लिंक परियोजना शुरू से विवादों में रही है। दोनों राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने और वृहद स्तर पर्यावरण का संभावित विनाश जैसे कारणों को लेकर यह परियोजना पाइपलाइन से बाहर नहीं निकल पा रही थी। अब दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और केंद्र में भी। हाल ही में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने परियोजना शुरू करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए। दावा किया जा रहा है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना परियोजना से बुंदेलखंड के उप्र और मप्र के 12 जिलों को पानी मिलेगा। मप्र के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी को पानी मिलेगा। वहीं उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलों को राहत मिलेगी। अकाल व सूखे के लिए अभिशप्त बुंदेलखंड के लिए यह सुखद खबर है। इस परियोजना से बुंदेलखंड में अकाल व सूखा कब तक और कितना खत्म होगा? पानी की कितनी उपलब्धता होगी? यह भविष्य के गर्त में है। लेकिन इस परियोजना के जो परिणाम तत्काल देखने को मिलेंगे, वह बेहद भयावह है। परियोजना के मुताबिक मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की सीमा पर केन नदी पर ग्राम डोढ़न में 73.2 मीटर ऊंचा बांध बनाकर 212 किलोमीटर लम्बी नहर के माध्यम से केन का पानी बेतवा नदी में उड़ेला जायेगा। आशंका जताई जा रही है कि इससे केन नदी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। पन्ना जिले में इस परियोजना का विरोध शुरू हो गया है। क्योंकि पन्नावासियों का कहना है कि केन नदी पर पहला हक उनका है, हमें इसका पानी पेयजल के रूप में चाहिए। क्योंकि पन्ना जिले में अभी पेयजल की आपूर्ति बोर, कुंओं व तालाबों के जरिये होती है। इस कारण पेयजल की समस्या गर्मी के मौसम में विकराल हो जाती है। विरोध इसका भी हो रहा है कि पन्ना और छतरपुर ही नहीं, मध्यप्रदेश की शान पन्ना नेशनल पार्क तबाह हो जाएगा। पर्यावरण के जानकारों के मुताबिक इस परियोजना के तहत करीब 6,000 एकड़ में फैले जंगलों की बलि चढ़ जाने का अनुमान है। लाखों पेड़ घास की तरह उखाड़ दिए जाएंगे। बर्बाद होने वाले इस जंगल क्षेत्र में से करीब 5,500 एकड़ का हिस्सा तो सिर्फ पन्ना नेशनल पार्क का होगा। नेशनल पार्क में मौजूद दुर्लभ जीवों और वनस्पतियों के नष्ट होने की आशंका है।
वहीं, छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे का भंडार मिला है। दावा किया जा रहा है यहां पन्ना जिले से 15 गुना ज्यादा हीरे निकलने का अनुमान है। हीरे निकालने के लिए एक निजी कंपनी ने 382 हेक्टेयर जंगल राज्य सरकार से मांगा है। जंगल के दो लाख से ज्यादा पेड़ों को नष्ट किया जाएगा।
भवन, सड़क व बांध बनाने के लिए पर्यावरण से कैसे खिलवाड़ किया जा रहा है, इसकी बानगी राजधानी भोपाल में भी देखी जा सकती है। भोपाल शहर में बीआरटीएस, एमएलए रेस्ट हाउस, नर्मदा पेयजल योजना सहित ब्रिज व सड़क चौड़ीकरण के लिए हजारों पेड़ों की बलि ली जा चुकी है। तर्क और दावा किया जाता है कि जितनी संख्या में पेड़ काटे जाते हैं, उतने पेड़ अन्य जगह लगा दिए जाते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इससे बड़ी फर्जी दावा कुछ हो नहीं सकता। केन्द्रीय वन मंत्रालय के 2019-20 की रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्यप्रदेश के कई जिलों में पेड़ों की संख्या लगातार घटी है। कई जिलों में 25 फीसदी तक जंगल का घनत्व कम हो गया है। पर्यावरण का विनाश कर विकास के पथ पर चलना भविष्य में कितना घातक साबित होगा? ये सोचने की फुर्सत आम लोगों के पास नहीं है। इस मुद्दे पर लोगों की निष्क्रियता का नतीजा है कि सत्तानशीं नेताओं पर जंगलों को नष्ट करने की सनक सवार है।
दृश्य– 1: केन–बेतवा लिंक परियोजना की तैयारियां शुरू। इससे पन्ना नेशनल पार्क का अस्तित्व गायब हो जाएगा। बाघ संरक्षित क्षेत्र इतिहास के पन्नों में लुप्त हो जाएगा। पर्यावरणविदें के अनुसार परियोजना के तहत 18 लाख पेड़ काटे जाने का अनुमान है।
दृश्य.. 2 : छतरपुर जिले के बक्सवाहा में मिला हीरों का भंडार। हीरे निकलाने के लिए 382 से ज्यादा हेक्टेयर में फैले जंगलों को किया जाएगा नष्ट। दो लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। दुर्लभ वन्य जीव हकीकत में दुर्लभ हो जाएंगे।
दृश्य.. 3 : बांधवगढ़ नेशनल पार्क के अलावा अमरकंटक, शहडोल व अनूपपुर के जंगल छह दिन तक आग से सुलगते रहे। कितने पेड़ राख हो गए? कितने वन्य जीव मरे? इसका कोई हिसाब-किताब नहीं।
दृश्य..4 : झांसी-खजुराहो फोरलेन के निर्माण के दौरान 5 हजार से ज्यादा वृक्ष काटे गए। ये पेड़ हरे-भरे और सालों पुराने थे।
ये दृश्य बयां कर रहे हैं कि पेड़ों के संरक्षण, पर्यावरण सहेजने के लिए मध्यप्रदेश कितना गंभीर है।