30 वर्ष की उम्र में मिले ज्ञान का दुनियाभर में किया प्रसार और कहलाए महावीर
भूमिका भास्कर – दो हजार साल पहले जब देश रुड़ियों की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, चारों ओर कर्मकांड के कारण जनमानस में विसंगतियां फैली हुई थी। भारतवर्ष के अतिसमृद्ध होते हुए भी भारतवासियों में विषमता व्यापत थी। राजवंश अपनी रियासतों की सीमा का विस्तार करने में लगे हुए थे। ऐसे में हजारों- लाखों लोगों का युद्ध में खूनखराबा होता था।इस तरह कि परिस्थितियों में भारतवर्ष को शांति, अहिंसा और त्याग की राह दिखाने के लिए आगे आए एक महान महात्मा, जिनका नाम था महावीर स्वामी।
राजपरिवार में हुआ था जन्म
भगवान महावीर स्वामी का जन्म आज से ढाई हजार साल पहले ईसा से 599 साल पहले चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को वैशाली के गणतंत्र राज्य कुण्डलपुर में हुआ था। उनके पिता इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा थे। जन्म के समय उनका नाम वर्धमान रखा गया। जब महावीर स्वामी का जन्म हुआ उस समय राज्य काफी समृद्ध हो गया इसलिए राजपरिवार में जन्मे बालक का नाम वर्धमान रखा गया। वर्धमान के पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में उनके पांच नामों वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति का उल्लेख मिलता है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के 188 वर्ष पश्चात उनका जन्म हुआ था।
यशोदा से हुआ विवाह
जैन पंथ की शाखा दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी को बाल ब्रह्मचारी माना गया है। राजकुमार वर्धमान की बचपन से ही भोग विलास में रूचि नहीं थी इसलिए वो विवाह करना नहीं चाहते थे, लेकिन परिवार के दबाव की वजह से यशोदा नामक कन्या से विवाह कर लिया। इन दोनों से बाद में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या का जन्म हुआ। युवा होने पर राजकुमारी प्रियदर्शिनी का विवाह राजकुमार जमाली के साथ संपन्न हुआ।
वर्धमान ने की तपस्या और बने महावीर
राजकुमार वर्धमान का जल्द ही सांसरिक माया से मोह भंग हो गया और माता पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने अपने बड़े भाई की अनुमति से संन्यास का मार्ग अपना लिया। उन्होंने 30 साल की आयु में वैराग्य लिया था। राजकुमार वर्धमान ने जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे 12 साल की कठोर तपस्या के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ज्ञान की प्राप्ति की। उन्होंने अपने ज्ञान को भारतवर्ष और उसकी सीमाओं से बाहर फैलाया और कई राजा-महाराजा के साथ आमजन को जैन धर्म को अपनाने के लिए प्रेरित किया। कार्तिक मास की अमावस्या को अर्द्धरात्री के समय महावीर स्वामी निर्वाण को प्राप्त हुए। मोक्ष के समय उनकी आयु 72 वर्ष की थी।