इंसानियत के धर्म – कर्म , बुनियादी मुद्दों में रुचि लेकर कोरोना से लड़े, यथार्थ न भूलें।

पारस प्रताप सिंह
( लेखक युवा समाजसेवी एवं जल जन जोड़ो अभियान के सलाहकार है)
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इस समय कोरोना महामारी के दुःख और शोक से कोई भी अछूता नहीं है। इस प्रकार की त्रासदी आजाद भारत में न कभी आई और न कभी पुनः आनी चाहिए।
कोरोना बड़ी विचित्र, अदृश्य महामारी है, लेकिन *हमे यह भयावह गुरु की तरह जाने कितने सत्यों से परिचि भी करा रही है – कुछ हम लोग चटपटी खबरों में डूब कर, यथार्थ से टूट कर, हम थोड़ी देर के लिए सुरक्षित महसूस जरूर कर सकते है, लेकिन सच यह है कि हम सुरक्षित है नही। यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पहली लहर के बाद हम सचेत नही हुए बल्कि पहले जैसे रंग में डूब कर भूल गय थे। जिसके कारण आज व्यवस्थाओं में भयंकर कमी और बहुत ही खराब स्थिति है, जो आप देख ही रहे है। यह महामारी अदृश्य युद्ध है।
*आज हम कर्म और धर्म भी भूल रहा है। एक समाज स्वस्थ पर निवेश की भी बात न करे, सामाजिक सुरक्षा न करके, वो चुप बैठे रहे, अपनी बुनियादी सुविधाओं को भूल करके धर्म , जाति बाद, भक्ति प्रद राजनीति और कई प्रलापो में लुप्त हो , तब वह ऐसी गंभीर महामारी से कैसे लड़ेगा?* हम देख ही रहे है कि जैसे ही यह महामारी आई तो वी आई पी नेताओं ने वीआईपी बैड पकड़ लिए। आम नागरिकों को ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया। हम लोगों के साथी मर रहे हैं और वह वी आई पी बंगलों में बैठ कर संवेदना व्यक्त कर रहे है।
अरे यह देश हमारा है, हमसे ही बनता है और इस देश के भविष्य को जिम्मेदारी भी हम पर ही है, किसी दूसरे की नही है। हम अपने इंसानियत नागरिक धर्म को भूल रहे है। आज भी हम स्वास्थ , शिक्षा, सुरक्षा, जल जीवन प्रकृति को भूल जाने, किस प्रकार से किस किस में लिप्त है। ऐसा रूप देखकर दुख होता है। लेकिन शायद अब भी देर नहीं हुई है, रात के बाद फिर दिन होगा, अंधेरों के बाद फिर उजाला होगा। हम अपने नागरिक इंसानियत के धर्म कर्म को न भूलें, बुनियादी मुद्दों में रुचि लें, प्रश्नों को उठाएं और उत्तर भी दें। आर्युवेद को तरफ भी ध्यान दे। लोगो को साहस, सावधानी, प्रदान करें। तब ही इससे लड़ पाएंगे, आशाएं जिंदा रखे, फिर से एक नए रूप में हम ग्राम स्वराज की रचना करेंगे।
