4 साल की मेहनत के बाद किसान ने खेत में तैयार किए कश्मीरी सेब के 80 पेड़।

राहुल उपाध्याय कटनी
कटनी। मेहनत रंग लीाती है यह कहावत कटनी के पटवारा निवासी एक किसान पर चरितार्थ होती है। किसान ने कारनामा ही ऐसा किया है। पटवारा निवासी किसान रमाशंकर कुशवाहा ने ठंडे प्रदेश काश्मीर और हिमाचल प्रदेश में होने वाली सेव की फसल को अपने गांव में उगाकर सभी को चकित कर दिया। रमाशंकर ने 35 डिसमिल में सेव के पौधे लगाए, जो अब फलदार हो चुके है। टिश्यु कल्चर में रोपें गए 80 पौधे अब पेड़ बन चुके है और उनमें फल आने शुरू हो चुके है। कटनी में इस सफल प्रयोग को देखने के लिए दुरदराज के किसान भी रमाशंकर द्वारा की गई सेव की खेती देखने पहुंच रहें है। इस खेती को करने के लिए रमाशंकर ने किसी भी प्रकार की सरकारी ममद नहीं ली।
वर्ष भर में आया 70 हजार खर्च
सेव की खेती की शुरूआत 4 वर्ष पूर्व रमाशंकर ने शुरू कर दी थी। नर्सरी से 50 पौधे खरीद कर ले गए। 2 वर्ष की मेहनत में फसल जरूर लहलहा उठी लेकिन फल नही आने से वे थोड़े निराश हो गए। इस दौरान उन्होंने विशेषज्ञों से भी संपर्क किया। तब उन्हें जानकारी मिली कि सेव के देशी पौधों में फल आने में अभी कुछ समय और लग सकता है। किसान का इस बात से हौसला और बढ़ा उसने वह जानकारी जुटाई जिस तकनीक से वे अपने खेत में सेव के पौधे लगा सकते थे। देशी पौधों से निराशा मिलने के बाद वे टिश्यू कल्चर के पौधे लगाने की मंशा लेकर दिल्ली पहुंचे। पौधों की बिक्री करने वालों से अपने गांव का क्लाइमेंट बताया। दिल्ली में ही चार दिन रूके औश्र सेव फसल के संबंध में अन्य जानकारियां लेते रहें। इसके बाद 250 रूपए की दर से 100 पौधे लेकर दिल्ली से सीधे अपने गांव पटवारा पहुंचे। 20 पौधे अपने दोस्तो और जान पहचान वालों को मुफ्त में उनके द्वारा दिए गए। गांव में ही अपने खेत में 80 पौधे लगाए और उनकी देखरेख शुरू की। किसान रमाशंकर ने बताया कि एक पौधे को लगाने में करीब 300 रूपए का खर्च आया। ,खेत में लगाए गए पौधों की रखवाली उन्होंने स्वयं की। बीच-बीच में दीमक की दवा के साथ आर्गेनिक टी पौधे को वे देते रहें। किसान बताते है कि सेव के पौधों के बीच में ही उन्होंने अन्य तरह की फसल बोई थी जिससे इस बार एक पौधे से करीब 2 किलो फल निकलने की उम्मीद है। चुकिं यह पहली फसल है। इसलिए इस सेब को वे बाजार में बेचने के मूड़ में नहीं है।
