मन से सुनिए दूसरों के मन की बात

वर्तमान आपा-धापी भरे दौर में लोगों में बढ़ते अवसाद और तनाव की एक बड़ी वजह है,अपने मन की बात किसी से ना कह पाना। कल ही विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पूरी दुनिया में मनाया गया। यह दिवस हम सबको यही बताता है कि बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि हम दूसरों से अपने मन की बात कहें और उनकी भी सुनें।
मन की उलझन हो या विचारों की उधेड़बुन। हर कोई चाहता है कि उसके भीतर चल रही ऊहापोह को कोई सुनने-समझने वाला मिले। संवाद को ऐसा आधार मिले, जो मन में जन्म ले रहे हर सवाल का जवाब तलाशने में मददगार साबित हो। कोई तो ऐसा हो, जो मुश्किल भरे समय में आपको मन से सुने और हो सके तो समझाइश भी दे। लेकिन आज की व्यस्त जीवनशैली में किसी के पास भी इतना समय नहीं है और न ही रुचि कि वह दूसरे के मन की बात सुने। कहना ही नहीं सुनना भी जरूरी इस आधुनिक दौर में आभासी दुनिया के बढ़ते दखल ने हमें असहिष्णु बना दिया है। आज के समय में ऐसे अनगिनत प्लेटफॉर्म्स हैं, जहां अपनी कहो और भूल जाओ वाले हालात दिखते हैं। आज के दौर में कहना तो सबको है, पर सुनने का धैर्य किसी के पास नहीं रह गया है। हमें समझना चाहिए कि आपसी संवाद केवल शब्द भर नहीं होते हैं, उनका गहरा अर्थ और अपना महत्व होता है, जिसे मन से सुने बिना नहीं समझा जा सकता। अकसर हम दूसरों के मन की बात जानना तो चाहते हैं पर समय देकर उसे सुनना-समझना नहीं चाहते। हमेशा एक शॉर्टकट तलाशते रहते हैं, जो अरुचि का आभास लिए होता है। हमें यह समझना होगा कि हर कोई कहेगा तो सुनेगा कौन, ऐसे में संवाद के मायने ही क्या रह जाएंगे?
संवाद बचाता है जीवन
संवाद में सुनने के मायने केवल सामने वाले की बातों को सुन भर लेने तक ही सीमित नहीं होते हैं। किसी के मन की बात को सुनने से कई सरोकार जुड़े होते हैं। जो कभी अपने से जुड़े लोगों को सलाह देने तो कभी फैसला लेने में मदद करते हैं। कभी मन की पीड़ा बांटने का जरिया बनते हैं तो कभी आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सोच से बाहर लाकर जीवन की नई राह सुझाते हैं। यकीनन यह सब तब तक नहीं हो सकता, जब तक सुनने का धैर्य नहीं आएगा। जीवन से जुड़ी वास्तविक समस्याएं संवाद और समझ भरे रिश्तों का साथ पाकर आसान हो जाती हैं। सार्थक संवाद के प्रति बढ़ती उदासीनता के चलते व्यक्ति अपने परिवेश, परिवार और यहां तक कि अपने आप से भी कटने लगता है। आज हमारे आस-पास जो कटुता, आक्रामकता, चिड़चिड़ापन और अविश्वास का वातावरण बन रहा है, उसकी सबसे बड़ी वजह है, अर्थपूर्ण संवाद की कड़ी का टूटना। हालात कुछ ऐसे हो चले हैं कि बात तो होती है पर संवेदना का जुड़ाव नहीं होता है। कहने सुनने का संवेदना भरा व्यवहार हर ओर नदारद है। हम गौर करें तो पाएंगे कि हमारे परिवेश में कितने ही उदास चेहरे अकेलेपन की खिड़कियों से झांक रहे हैं, इस इंतजार में हैं कि कोई तो उनके मन की सुने और समझे।
परवाह का पैमाना
जीवन से जुड़े किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सुनने की कला में पारंगत होना जरूरी है। यही एक गुण है, जो आपसे जुड़े लोगों को यह बता सकता है कि आपको उनकी परवाह है। आपके अपनों के मन के भीतर जो कुछ भी असहज है, आप उसे जानना ही नहीं समझना भी चाहते हैं। सुनने की आदत हर रिश्ते को नया आयाम दे सकती है। इसीलिए बातचीत के दौरान, कहने के लिए अगर कोई बहुत जरूरी बात ना हो तो अपना ध्यान केवल सुनने में लगाएं। सुनना आपको हर उम्र के लोगों से जोड़ता है। जहां एक ओर बच्चे अपने मन में उलझनें और आश्चर्य बांटने को लालायित रहते हैं, वहीं दूसरी ओर बड़े अपने अनुभव और समझ साझा करने की इच्छा रखते हैं। दोस्तों को उलझनों की गांठें खोलनी होती हैं तो जीवनसाथी को भावनात्मक सहारे की दरकार होती है। हर रिश्ते की बुनियादी जरूरत है संवाद, और सार्थक संवाद का सबसे अहम पहलू है दोस्तों, जीवन साथी, बच्चों और बुजुर्गों की बात मन से सुनना।
ना टूटे संवाद का पुल
आज के दौर में जीवनशैली जनित मानसिक तनाव, मेंटल डिसऑर्डर के बढ़ते मामलों की अहम वजह है। हमें यह समझना होगा कि इस तनाव की बड़ी वजह मन की बात साझा ना कर पाना है। संवाद के साधन जितने बढ़े हैं, बातों के मायने उतने ही गुम हो चले हैं। मन की कहने का अवसर ना मिलने वाले लोग खुद को खाली, अवांछित और महत्वहीन महसूस करने लगते हैं। मिशिगन यूनिवर्सिटी के एक शोध में मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि मानसिक कार्यप्रणाली और सामाजिक व्यवहार में सीधा संबंध होता है। इसीलिए नियमित रूप से आपसी संवाद होना जरूरी है।
खुद के लिए भी फायदेमंद
आज के व्यस्त दौर में अकसर यह मान लिया जाता है कि जब आप अपना समय किसी की बात को सुनने में लगाते हैं तो आप वक्त की बर्बादी करते हैं। जबकि हकीकत तो यह है कि मन से किसी भी बातचीत का हिस्सा बनना, अंतत: आपके लिए ही फायदेमंद होता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आप सुनिए जानकारी बढ़ाने के लिए। किसी विषय को समझने के लिए। किसी की बात को साझा करने का आनंद पाने के लिए। यहां तक कि सुनना आपकी शब्दावली और वैचारिक शक्ति बढ़ाने में भी मदद करता है। सुनने की कला आपके व्यक्तित्व को भी वैचारिक दृढ़ता देती है। आपकी सहिष्णुता और दूसरों के विचारों को लेकर स्वीकार्यता की सोच एक आपके आत्मविश्वासी व्यक्तित्व की पहचान बनती है। इतने सारे व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक लाभ देने के अलावा सुनने का सबसे बड़ा फायदा है आप से जुड़े लोगों को यह बताना कि आपको उनकी परवाह है। यही एक बात आपसे जुड़े हर रिश्ते को विश्वास और प्रेम से बांधने का काम करेगी।
बात सुनने का सही तरीका
आप सामने वाले की बात उसी तरह से सुनें, जिस तरह से आप चाहते हैं कोई आपकी बात सुने। इसके लिए पूरे मन से संवाद के दौर का हिस्सा बनें। किसी बात को सुनने में आपकी भागीदारी कितनी है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसे दिल से सुनते हैं या दिमाग से। यानी कि आपकी उपस्थिति भर है या फिर आपका मन-मस्तिष्क पूरी तरह उस संवाद के दौर में कहने वाले के साथ है। दिल से सुनेंगे तो कहने वाले के शब्द ही नहीं चेहरे के भाव भी पढ़ पाएंगे। जो बात और हालात बताए जा रहे हैं, उन्हें ठीक से जान पाएंगे। इसका परिणाम ये होता है कि सामने वाले की बात को हल्के में लेने के बजाय मन से जुड़कर उन परिस्थितियों का समझ सकते है। कई अनकही बातें भी आप तक पहुंच सकती है। पूर्वाग्रहों से बचते हुए आप पूरी बात समझ सकते हैं। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि सुनने वाले का ध्यान अगर कहने वाले की बातों पर नहीं होता है तो यह अपनी बात साझा कर रहे व्यक्ति के मन को ठेस पहुंचाता है। उसे पीड़ा देता है। ये तकलीफ कुछ ऐसी होती कि जिन लोगों की बात को आमतौर पर लोग अनसुना कर देते हैं, वे अपने मन की कहना ही छोड़ देते हैं और अवसाद के घेरे में आ जाते हैं। मनोवैज्ञानिक और लेखक एम. पैक ने अपनी बेस्टसेलर पुस्तक ‘द रोड लैस ट्रैवल्ड’ में लिखा है कि ‘जब कोई अपने मन की बात साझा करे तब अपने अन्य कामों का विराम देकर कुछ समय उस बात को सुनने के लिए निकालें। पूरी एकाग्रता से कहने वाले की सुनें और समझने की कोशिश करें, जो वो व्यक्ति महसूस कर रहा है।
