छतरपुर : आदिवासी समाज की संस्कृति संरक्षण के साथ बक्सवाहा में स्वरोजगार की असीम संभावनाएं।
राजेश यादव की रिपोर्ट
छतरपुर जिले के बक्सवाहा में मिले आदिवासी सभ्यता के शैल चित्र बक्सवाहा में जहां एक और हरे-भरे जंगल काटकर हीरा निकालने की बात पूरे देश में विख्यात हो गई। वैसे ही आदिवासी समाज की धरोहर के रूप में और ऐतिहासिक निशानी शैलचित्र के संरक्षण की बात भी तूल पकड़ चुकी है। अगर इन शैल चित्रों के संरक्षण का कार्य सरकार जिम्मेदारी के साथ करती है तो यह हमारी विश्व धरोहर के रूप में संरक्षित होकर क्षेत्र को विकसित करेगी स्वरोजगार के सैकड़ों अवसर और संभावनाएं हमारे सामने होगी। जिस प्रकार मध्यप्रदेश में भीमबेटका विश्व धरोहर में शामिल है जबकि वहां 12 हजार साल पुराने शैलचित्र हैं।
उससे कई गुना ज्यादा 25 से 20 हजार साल पुराने शैल चित्र बक्सवाहा के ग्राम का कसेरा निमानी व अन्य स्थानों पर मिले हैं।
इसके साथ-साथ बक्सवाहा के कई स्थानों पर भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा खोज जारी है संभावित सभी जगहों पर टीम द्वारा सर्वेक्षण कर वेरीफाई किया जा रहा है। इसके पूर्व महाराजा कॉलेज के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एस.के. छारी ने इन प्राकृतिक शैलचित्रों का अध्ययन कर पर शोध पत्र भी जारी किया है ।
उन्होंने इसकी जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को दी है फिर भी अति प्राचीन धरोहर की उपेक्षा सरकार के द्वारा की जा रही है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भा.पु.स.) भारत की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए एक प्रमुख संगठन है। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। इसके अतिरिक्त, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार यह देश में सभी पुरातत्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है। यह पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। यह संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। इस विभाग की अधिकारी शीघ्र ही हमारी संस्कृति को संरक्षण प्रदान करने के लिए आगे आएं और इसे विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए पहल करें।
बक्सवाहा के संदर्भ में राजेश यादव सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि बक्सवाहा की आवाज़ है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सीनियर अधिकारियों से एक बैठक संपन्न हुई जिसमें बक्सवाहा की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण व बक्सवाहा में पाए जाने शैल चित्र और लिपि के अवशेष पाए गए हैं इस हेतु अहम बैठक आयोजित हुई।
स्वरोजगार के अवसर की असीम संभावनाएं इन शैल चित्रों को संरक्षित कर दिया जाए तो , स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेंगे, शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी देश-विदेश से आने वाले सैलानियों के संपर्क में आने से भाषा पर भी असर पड़ेगा साथ ही साथ गांव के लोग आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे स्वरोजगार और आय के स्रोत का बढ़ना स्वाभाविक है जहां भी इस तरह के विश्व धरोहर हैं वहां होटल, चाय- नास्ता, पान , पानी , भोजनालय, खिलौने की दुकान बुक स्टॉल, गाइड, सिक्योरिटी गार्ड, फल, फूल, इसके साथ ही क्षेत्रीय स्थानीय प्रचलित वस्तुओं का विक्रय विश्व स्तरीय हो जाएगा और बुंदेलखंड के बक्सवाहा का नाम देश दुनिया में जाना जाएगा।