पत्रकार की परिभाषा को इतिहास से पढ़ें फिर आलोचना को स्वीकार करें।

लेखक- संतोष गंगेले कर्मयोगी बुंदेलखंड


भोपाल / छतरपुर – मीडिया कर्मी और मीडिया से जुड़े सभी साथियों के लिए एक संदेश के रूप में यह लेख लिखना होगी विधायका न्यायपालिका कार्यपालिका द्वारा अभी तक असली और नकली पत्रकार की परिभाषा को परिभाषित नहीं किया गया है l अधिमान्यता प्राप्त लेने से आप अपराध से नहीं बच सकते हैं l आधारहीन बिना प्रमाण के किसी के विरुद्ध समाचार प्रकाशित करने पर कानून में पत्रकार के विरुद्ध धाhरा 499 500 501 502 IPC दंडनीय अपराध है मैं ऐसे कई मुकदमे लड़ चुका हूं l
वर्तमान समय में देखा जा रहा है बड़े-बड़े चैनल राष्ट्रीय अखबार एवं यूट्यूब चैनल वेबसाइट सोशल मीडिया पर लगातार फर्जी पत्रकारों की भी पोस्ट आ रही है उन पोस्टों को पढ़कर के आश्चर्य भी होता है l जिन लोगों को स्वयं पत्रकारिता का ज्ञान नहीं है वह इस तरह की बातें एवं अमर्यादित भाषा का प्रयोग करके अपनी इज्जत खराब करने में लगे हैं l भारत देश गुलामी का कारण यही रहा है और यही हाल रहा तो जो हालत वर्तमान में मीडिया प्रेस पत्रकार की है इससे कहीं ज्यादा बदतर होने वाली है  l क्योंकि अधिकांश पत्रकार अपनी समाज को ही फर्जी पत्रकार बताते हैं आपके बताने और लिखने से क्या कोई फर्जी हो जाएगा फर्जी पत्रकार जो पत्रकारिता करते हैं वह पकड़े जाते हैं पुलिस उनके खिलाफ मुकदमा बनाती है उन्हें जेल भेजती है और पुलिस अपना काम करती है हम आपको एक दूसरे के पैर खींचने का काम नहीं करना चाहिए l

फर्जी और असली पत्रकार का निर्णायक किसको अधिकार दिया

       अनादि काल से नारद मुनि जी एक संवाद के रूप में पूजनीय वंदनीय माने जाते हैं जो अध्यात्मिक को धार्मिक दृष्टि से सृष्टि को चलाने संवाद के रूप में संवाददाता का काम करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी समाज और राष्ट्रीय हित के लिए समाज विरोधी ऐसा कोई काम नहीं किया है जिससे कि मातृभूमि एवं राष्ट्र के लिए नुकसानदायक रहा हो l पत्रकारिता का इतिहास हमारे भारत देश के पत्रकार विदेशों से मानते हैं लेकिन मेरा एक अपना निजी अनुभव है कि भारत विश्व गुरु रहा है और विश्व गुरु बनेगा इसलिए हम सभी को भारतीय इतिहास को पढ़ने समझने देखने की आवश्यकता है अनादि काल से भारत सनातन संस्कृति धर्म प्रत्येक क्षेत्र में ऊर्जा और सुख शांति प्रदान करता आता रहा है लेकिन भारत सैकड़ों वर्ष पूर्व मुस्लिम शासक का गुलाम रहा उसके बाद अंग्रेजों का गुलाम हो गया राजा महाराजाओं का शासन रहा इसलिए देश के लोग ना तो अपना इतिहास लिख सकें और ना ही बता सके जबकि हमारे भारत की इतिहासिक धार्मिक रीति रिवाज परंपराएं एवं हमारे हजारों हजारों वर्ष पुराने धार्मिक स्थल मंदिर मठ इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हमारी सनातन संस्कृति करोड़ों वर्ष पुरानी है आज भारत में जिस तरह की देशद्रोह की गतिविधियां चल रही हैं उसे मीडिया उठा नहीं पा रही है और ना मीडिया साहस कर पा रही है यदि वास्तविक पारदर्शिता के सामान मीडिया अपनी बात को छोटे से छोटे स्थान से उठाकर समाज तक ले आने का काम कर सकती है मैं यह समझता हूं कि वर्तमान में इस भौतिकवादी युग में धन के पीछे धन कमाने के पीछे आदमी पागल हो गया है और इसी के कारण हमारे राष्ट्रीय चैनल राष्ट्रीय समाचार पत्र स्वतंत्रता से दूर हो गए हैं जो ग्रामीणों का कस्बा से जुड़े पत्रकार हैं जो सटीक जानकारी सही जानकारी पत्रकारों के पास होती है वह जानकारी राजधानी बैठे पत्रकार को नहीं होती है व्यवसायिक पत्रकारिता होने के कारण आज हमारी ईमानदारी लगन शील पत्रकारिता चट्टानों के बीच दब रही है कलम की नोक टूट रही है लिखने का साहस जो लोग करते हैं उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित परेशान किया जाता है घटना दुर्घटना में उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है या झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाता है उसके बाद हम पत्रकार एक दूसरे की कटिंग करने में पीछे नहीं रहती हैं असली और नकली पत्रकार कौन है इसका निर्णय कौन करेगा यह समझ लेना जरूरी है पत्रकारिता समाचार का सूत्र कहलाता है खबर की सूत्रधार को मीडिया से जोड़ा जा सकता है खबर की सत्यता परखने जाने के लिए जो तन मन धन से समर्पित होते हैं वह पत्रकार होते हैं लेकिन सरकार की नीतियों ने अलग-अलग प्रदेश की नीतियों ने हम पत्रकारों में फूट डालने का काम किया है जिस कारण से आज हम आपस में लड़ रहे हैं टकरा रहे हैं कहीं तहसील स्तरीय पत्रकार जिला स्तरीय पत्रकार राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता प्राप्त करने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा रहे हैं जबकि सरकारें पत्रकारों को केवल लॉलीपॉप पढ़ाने के अलावा कुछ नहीं करती है l अधिमान्य पत्रकारों को सरकार क्या सुविधा दे रही है इसका अंदाजा जो अधिमान्य पत्रकार बन चुके हैं उनसे पूछिए केवल आपको जनसंपर्क विभाग एवं शासन की मीटिंग में चाय नाश्ता मिलने लगेगा इसके अलावा कोई सुविधा नहीं है l
एक समय था जब देश गुलाम था और जो पत्रकार थे एक शब्द लिखते थे जिसका प्रभाव लाखों लोगों पर पड़ता था l देश की आजादी में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही लेकिन संविधान में पत्रकारों की सुरक्षा व उनके परिवार के लिए कहीं भी कोई संविधान में सुविधा प्रदान नहीं की गई है यह हमारे साथ पक्षपात आजादी के बाद से होता रहा है पर आज भी हो रहा है l
लेकिन आज की पत्रकारिता में बड़े-बड़े दैनिक समाचार पत्र एक पेज का समाचार छापने के बाद भी जनता पर उनका कोई प्रभाव नहीं पढ़ रहा है अपराधिक समाचारों को प्राथमिकता देने के कारण यह जरूर हो रहा है कि जो अपराध करने वाले हैं वह टीवी सीरियल यूट्यूब सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया से अपराध करना सीख कर के देश में अपराधों की संख्या बढ़ रही है

भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को बचाना है

      यदि देश की आजादी को सही तरीका से प्रस्तुत करना है देश को भारतीय संस्कृति संस्कारों से बचाना है तो मध्य प्रदेश ही नहीं संपूर्ण भारत के मीडिया से जुड़े साथियों से हमारा निवेदन है कि वह आपसी मनमुटाव छोड़कर के असली नकली पत्रकारिता शब्दों का त्याग करके देश और समाज सेवा के लिए अपने स्तर से काम करें सरकारें पत्रकारों को कोई मदद नहीं करती हैं मदद उसी प्रकार की होती है जिसकी राजनीतिक पहुंच होती है या जिसकी लेखनी निष्पक्ष होती है मुझे 40 वर्ष पत्रकारिता करते हो गई है मेरा जो अनुभव है जो पत्रकार जिसने ताकि अधिकारी की सरकार की चाटुकारिता करता है वह लाभ ले जाता है बाकी जिंदगी और मौत से खेलता रहता है पत्रकारिता पूर्ण रूप से समाज सेवा देश सेवा है पत्रकारिता को कभी चौथा स्तंभ का स्थान नहीं मिला है हम आप कह के अपना मन भर लेते हैं पत्रकार की हत्या और मौत होने पर किसी भी सरकार द्वारा किसी तरह की परिवारिक सहायता नहीं की जाती है ना की गई है इससे ज्यादा विडंबना क्या हो सकती है हम आप प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सोशल मीडिया यूट्यूब टि्वटर फेसबुक जिससे भी जितना हो सके अपराधिक घटनाओं को कम से कम प्रकाशित करें समाज में उसका दुष्प्रभाव पड़ता है सामाजिक खबरों को सकारात्मक खबरों को समाज में लाने का प्रयास करें देश में जाति धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों के चेहरे बेनकाब करिए पत्रकारिता समाज की रीढ़ की हड्डी होती है निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करने वाले पत्रकार भारतीय इतिहास के पन्नों पर किताबों में दबे पड़े हैं हमें उनकी जीवनी को पढ़ने की आवश्यकता है हम लोग लालच को छोड़ कर के बैक ब्लैक मेलिंग पत्रकारिता का त्याग करके यदि समाज सेवा करते हैं तो वह आपको समाज में मान सम्मान इज्जत मिलेगी और यदि कालाबाजारी करते हैं ब्लैकमेल करते हैं तो आपको जगह जगह अपमानित होना पड़ेगा और पत्रकारिता को कलंकित करने में आपकी हम भूमिका रहेगी l आम जनता खबर प्रत्येक तरह की चाहती है लेकिन जब कोई मामला पर जाता है तो पत्रकार का कोई साथ नहीं देता है न्यायालय में जो समाचार प्रकाशित करते हैं उसे सिद्ध करना पत्रकार की स्वयं की जिम्मेदारी बन जाती है ऐसे कई प्रकरणों में पत्रकारों को सजा भी हो गई जिसका किसी ने साथ नहीं दिया इसलिए पत्रकारिता भी करना है तो जीवन समर्पित करके समाज सेवा के लिए सामने यहां हैं अन्यथा घर बैठे हैं बैग और माइक लेकर घूमने से लोग पत्रकारिता की दृष्टि से आप को नहीं देखते हैं समाज में आपको क्या कहते हैं आपके जाने के बाद पता चलता है कुछ लोगों ने पत्रकारिता को पूरी तरह से बदनाम कर दिया है जिससे अच्छे लोग काम करने वाले भी बदनाम हो रहे हैं l

संतोष गंगेले कर्मयोगी
संस्थापक अध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब मध्य प्रदेश


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