सृष्टि को शुद्ध एवं सुरक्षित करने की कला है अग्निहोत्र।

बनखेड़ी से नफीस खान की रिपोर्ट

बनखेड़ी । भौतिक संसाधनों से सुसज्जित और परिपूर्ण किंतु प्रदूषित वातावरण के कारण उत्पन्न शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए वेदों पर आधारित सूर्य उदय सूर्यास्त के समय किया जाने वाला नित्य यज्ञ अग्निहोत्र कहलाता है जो ईश्वर आज्ञा भी है। वर्तमान में फैल रही कीटाणु जनहित महामारी से बचने और अपने घर के वातावरण को कीटाणु और विषाणु से मुक्त करने हेतु वर्तमान में प्रत्येक घर की तथा प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता भी है । आज विश्व में वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने हेतु अग्निहोत्र बहुत सरल एवं सटीक उपाय है। जिसे सामाजिक संस्था सर्वोदय द्वारा कराया जाना प्रारंभ किया जा रहा है सामाजिक संस्था सर्वोदय पर्यावरण को लेकर वृक्षारोपण प्रतिवर्ष कराती है इसी के साथ ही संस्था द्वारा जिन किसान क्लबों का निर्माण किया गया है उन सब किसानों के बीच अग्निहोत्र विधि को समझाने का कार्य कर रही है।

आइए जानते हैं अग्निहोत्र का महत्व
सभी यज्ञ में अग्निहोत्र मुख्य यज्ञ है। गीता के अनुसार परम ब्रह्म परमात्मा का निवास नित्य अग्निहोत्र में रहता है। जिस प्रकार नदियों में सागर मनुष्यों में राजा छंदों में सावित्री छंद मुख्य है उसी प्रकार यज्ञों में अग्निहोत्र यज्ञ श्रेष्ठ है युगों युगों में जो तीर्थ और सभी देवता हुए हैं उन्हें देखना चाहो तो हे राजन वहां देखो जहां नित्य अग्निहोत्र होता है। नारायण उपनिषद के अनुसार सायं एवं प्रातः किया जाने वाला अग्निहोत्र यज्ञ स्वर्ग की ज्योति है। अग्निहोत्र से बढ़कर पवित्र कर्म संसार में अन्य नहीं है। इसका पद्मपुराण मैं उल्लेख है। अथर्ववेद के अनुसार
सायंकाल सूर्यास्त के समय की गई अग्निहोत्र उपासना प्रातः काल तक तथा प्रातः काल सूर्योदय के समय किया गया अग्निहोत्र सूर्यास्त अर्थात सायंकाल तक तन मन एवं बुद्धि को प्रसन्नता प्रदान करता है अग्निहोत्र वातावरण शुद्धि हेतु एवं सृष्टि संरचना को जीवित रखने की कला है।

अग्निहोत्र के समय उपयोग की जाने वाली सामग्री
स्थानीय समय की सूर्योदय एवं सूर्यास्त की समय सारणी पिरामिड आकृति एवं एक निश्चित माप का तांबे या मिट्टी का बना पात्र जिस का तला 5.25x 5.25 सेमी ऊंचाई 6.5 सेमी एवं ऊपर से
14.5×1 4.5 सेमी
गोवंश के गोबर के साफ कंडे
दो बूंद गाय का घी तथा दो चुटकी साबुत चावल आदि।

अग्निहोत्र करने की विधि

स्थानीय सूर्योदय व सूर्यास्त के 10 मिनट पूर्व पात्र में कंडे की अग्नि तैयार कर लें ।और फिर अग्नि कपूर या गाय के घी की बाती रखकर प्रज्वलित करें । अग्नि तैयार हो जाने के 2 मिनट समय से पूर्व घी चावल की मिश्रित आहुति तैयार कर लें और समय हो जाने पर आहुति मंत्रों के साथ छोड़ें। सूर्यास्त के समय बोले जाने वाला मंत्र आग्नेय स्वाहा आग्नेय इदं न मम । दूसरी आहुति प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदं न मम। सूर्योदय के समय बोले जाने वाला मंत्र सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदं न मम दूसरी आहुति प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदं न मम। स्वाहा बोलने पर ही आहुति छोड़ी जावे। अग्निहोत्र की शुरुआत सूर्यास्त के समय से ही की जावे। आहुति देने के बाद आहुति के भस्म होने तक सीधे बैठकर आहुति की लों या धुआं को देखें। गहरी सांस लेवे। तथा मन को उस पर एकाग्र करने का प्रयास करें। इसके पश्चात अग्नि पात्र को निश्चित स्थान पर रख दें । भस्म को अगले समय के अग्निहोत्र की तैयारी पर ही खाली करें। अग्निहोत्र से पहले स्नान कर सके तो अच्छा है अन्यथा हाथ मुंह धोकर भी अग्निहोत्र कर सकते हैं । यह छोटी सी वेदोक्त विधि आपका जीवन सुख शांति एवं आनंद से परिपूर्ण कर देगी प्रत्येक वाद ,मत संप्रदाय ,जातिवाद देश के व्यक्ति को अग्निहोत्र करने का अधिकार है। अग्निहोत्र का जहां वैज्ञानिक महत्व है वही यह आध्यात्मिक प्रक्रिया भी है सुबह शाम किए जाने वाला यह कार्य जहां वातावरण को शुद्ध करता है वही आत्मिक शुद्धि का कारक भी है अग्निहोत्र से पर्यावरण के साथ-साथ मन को भी असीम शांति और शुद्धि का अनुभव होता है।

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