स्मृति शेष : पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का ‘डबल मर्डर’
गोपाल स्वरूप वाजपेयी भोपाल
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है एवं देश की कई प्रतिष्ठित सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं )
भोपाल – मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और कुछ साल पहले तक बीजेपी के बड़े कद्दावर नेता रहे लक्ष्मीकांत शर्मा नहीं रहे। लक्ष्मीकांत शर्मा को उनके चाहने वाले पंडितजी के नाम से बुलाते थे। उनके विधानसभा क्षेत्र सिरोंज में लगभग सभी लोग उन्हें महाराज के नाम से जानते थे, पुकारते थे। अभी केवल 60 साल के थे पंडित जी। भले ही लक्ष्मीकांत शर्मा की मौत का तात्कालिक कारण कोरोना है। लेकिन गहराई से देखें तो पूर्व मंत्री शर्माजी का ये एक प्रकार से ‘मर्डर’ है। उनकी मौत के बाद निश्चित रूप से कई बड़े नेताओं ने राहत की सांस ली होगी। क्योंकि शर्माजी की मौत के साथ ही व्यापमं महाघोटाले के कई खतरनाक राज और सबूत दफन हो गए। प्रदेश की राजनीति में वह ऐसे अनोखे नेता हैं, जिनका ‘डबल मर्डर ‘ किया गया । ‘डबल मर्डर’ किसने किया? इस साजिश में कौन- कौन शामिल हैं? क्या ‘डबल मर्डर’ के सूत्रधार इन छुपेरुस्तमों पर कभी इस कुकृत्य की आंच आएगी? शायद नहीं। गौरतलब है कि लक्ष्मीकांत शर्मा 1993 से 2013 तक लगातार बीजेपी के विधायक रहे। चार-चार मुख्यमंत्रियों के साथ वह कद्दावर मंत्री रहे। अपने हंसमुख व मददगार स्वभाव के कारण उनका कद इतना बढ़ गया था कि वह 2005 से लेकर 2013 तक मुख्यमंत्री पद के दावेदार समझे जाने लगे थे। अगर जीवन में नाटकीय घटनाक्रम यानी व्यापम कांड न होता तो 2013 के बाद शर्माजी ही मुख्यमंत्री होते। 2013 के विधानसभा चुनाव तक वह मध्यप्रदेश में सरकार के नम्बर दो नेता के रूप में जलवे बिखेर रहे थे। याद करें, जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने पीएम पद के लिए प्रोजेक्ट किया था और 2013 के विधानसभा चुनाव प्रचार के आगाज के लिए मोदी को भोपाल बुलाया गया। भोपाल के जम्हूरी मैदान में बीजेपी की ऐतिहासिक चुनावी रैली हुई। इस पूरे आयोजन का दारोमदार लक्ष्मीकांत शर्मा के कंधों पर था। हेलिपैड पर जो गिने-चुने नेता मोदी को लेने गए थे, उनमें लक्ष्मीकांत शर्मा सबसे आगे थे। मतलब, अभी तक शर्माजी की धाक पार्टी में भोपाल से लेकर दिल्ली तक थी। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद व्यापम कांड गरमा गया। इसे देखते हुए बीजेपी के नेताओं ने उनकी विधानसभा की टिकट खतरे में डाल दी। इसके बाद टिकट काटने की मुहिम में लगे उन सूरमाओं को दिल्ली से कड़ी फटकार लगी और शर्माजी की टिकट फाइनल हुई। उसी समय ये साफ हो गया था कि व्यापम कांड में पर्दे के पीछे से लाभ उठाने वाले शर्माजी की ‘राजनीतिक हत्या’ यानी राजनीति से नेस्तनाबूद करने की फिराक में हैं। क्योंकि व्यापम कांड की जांच के दौरान जो खबरें सामने आईं थीं, उनके अनुसार इस महाघोटाले में कई नेता शामिल थे। कुछ पर्दे के आगे से तो कुछ पीछे से। बीजेपी के कद्दावर नेता लक्ष्मीकांत शर्मा को टिकट मिल गया और क्षेत्र में उनकी पकड़ को देखते हुए ये भी साफ था कि उनकी जीत तय है। सो फिर रची गयी शर्माजी की राजनीतिक हत्या यानी सियासी सफर खत्म करने की साजिश। इस साजिश में बड़े-बड़े धुरंधर शामिल हुए। नतीजा, शर्माजी को मामूली वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद व्यापमं कांड की जांच में वह फंसते गए और जेल जाना पड़ा। इस प्रकार बलि का बकरा बनने के बाद भी शर्माजी उन सूरमाओं को बचाते रहे, जिनके कारण उनकी ये दुर्गति हुई। ये तय था कि अगर वह मुंह खोलते और सारा चिट्ठा बखान कर देते सबूतों सहित तो ऐसे कई नेता जेल की हवा खाते और राजनीतिक रूप से खत्म हो जाते, जो आज भी सत्ता की चासनी में डूबे हैं। साजिशें चलती रहीं, लेकिन शर्माजी खामोश रहे और खामोश रह-रहकर ही हमेशा के लिए खामोश हो गए। वह शायद खामोशी की चादर इसलिए ओढ़े रहे कि अभी उनके पास उम्र है। सम्भव है कि उनका सियासी सफर फिर से शुरू हो जाये। क्योंकि अगर वह मुंह खोलते तो कई बड़े नेता उनकी जैसी स्थिति में पहुंच जाते, लेकिन खुद का राजनीतिक भविष्य पर हमेशा के लिए ग्रहण लग जाता। इसलिए वह धीमे जहर का घूंट पीते रहे। व्यापमं कांड से पहले इस शख्स के चेहरे पर जो मुस्कान बिखरती थी, वैसी मुस्कान और आत्मविश्वास उनमें उसके बाद नहीं दिखा। व्यापमं कांड के एक मामले में वह दोषमुक्त भी हो गए थे। कुछ मामले कोर्ट में चल रहे थे, जिससे वे हमेशा आशंकित रहे। स्वाभाविक है कि इसी आशंका के चलते वह तनाव व अवसाद के शिकार हुए। इसके बाद भी वह राजनीति में वापसी की भरसक कोशिश में लगे थे।
इधर, एक पूरी लॉबी शर्माजी से हमेशा के लिए पिंड छुड़ाना चाहती थी। ये लॉबी उनकी राह में कांटे फैलाते रहे। कहते हैं कि चिंता चिता से बढ़कर होती है। और इस चिंता ने शायद लक्ष्मीकांत शर्मा को मौत की नींद सुला दिया। इसलिए शर्मा जी की मौत का तात्कालिक कारण भले ही कोरोना है, लेकिन शायद उन्हें चिंता, शोक और अवसाद ने मौत की आगोश में ले लिया। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का ये दूसरी बार ‘मर्डर’ किया गया है। इस प्रकार लक्षमीकांत शर्मा की मौत को ‘डबल मर्डर’ कहा जाना चाहिए।